लागत ज्ञात करने की प्र विधियां (Techniques of Finding out costs)

 लागत ज्ञात करने की प्रविधियां निम्नलिखित है

1. प्रमाणिक लागत विधि

2. प्रत्यक्ष लागत निर्धारण विधि

3. अशोषण लागत विधि

4. एकरूपता लागत निर्धारण विधि

5. पश्चात लागत विधि

6. निरंतर लागत विधि

1. प्रमाणिक लागत विधि,

इस विधि के अंतर्गत उत्पादन कार्य आरंभ करने से पूर्व यह अनुमान लगा लिया जाता है कि कार्य की लागत क्या आनी चाहिए जब वास्तविक कार्य का संपादन हो जाता है तो इसकी लागत की तुलना प्रमाणित लागत से की जाती है तथा उन कारणों को ढूंढने का प्रयास किया जाता है जिसके कारण लागतो में अंतर आ रहा है भविष्य में उन कारणों को दूर कर दोनों लागत में समानता लाने का प्रयास किया जाता है इससे व्यवसायिक कार्यक्षमता में वृद्धि होती है

2. प्रत्यक्ष लागत निर्धारण विधि,

समस्त प्रत्यक्ष लागतो को उत्पादन लागत में शामिल करना तथा समस्त अप्रत्यक्ष लागतो को उन्होंने के लाभ हानि खाता में दिखाया जाना प्रत्यक्ष लागत निर्धारण कहा जाता है यह प्रविधि भी सीमांत जैसी ही है प्रत्यक्ष लागत का अर्थ परिवर्तनशील लागत से है अंतर केवल इतना ही है कि विशेष परिस्थितियों में यहां परिवर्तनशील लागत को भी प्रत्यक्ष लागत माना जा सकता है

3. अवशोषण लागत विधि,

इसे संपूर्ण परीव्यायांकन भी कहा जाता है इस प्रविधि के अंतर्गत लागत ज्ञात करने के लिए स्थिर एवं परिवर्तनशील प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष सभी प्रकार की लागतो को शामिल किया जाता है

4. एकरूपता लागत निर्धारण विधि, 

यदि एक उद्योग से संबंधित समस्त फार्म एक लागत विधि का प्रयोग करें तो इसे एक रूप लागत निर्धारण कहते हैं हालांकि यह लागत निर्धारण की कोई अलग बिधि नहीं है इससे मात्र लग तो का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है

5. पश्चात लागत विधि,

इस रीति के अनुसार वस्तु का लागत मूल्य का निर्धारण उत्पादन के बाद किया जाता है यह रीती प्रमाणिक लागत विधि से बिल्कुल भिन्न है यहां अनुमानित लागत का कोई स्थान नहीं है लेखांकन वर्ष की समाप्ति के बाद ही सभी व्ययो का विश्लेषण तथा वर्गीकरण किया जाता है और उसके बाद ही लागत की गणना की जाती है यह रीति सरल होते हुए भी व्यवहारिक नहीं है इससे यह पता नहीं चलता कि निर्मित वस्तु लाभदायक रही या नहीं और यदि जानकारी होती भी है तो बाद में

6. निरंतर लागत विधि,

इस विधि के अंतर्गत किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन में होने वाले खर्चों का लेखांकन कार्य की प्रगति के समय ही होता है ताकि उत्पादन कार्य के प्रयोग स्तर पर उसकी लागत की जानकारी होती रहे यदि उस पर किसी प्रकार का अपव्यय होता है तो उसका निदान उसी क्षन कर दिया जाता है सही अर्थ में लागत गणना की हरिती सर्वोत्तम मानी जाती है

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