लागत लेखांकन की पद्धतियां (Metheods of Cost Accounting)

 लागत लेखांकन की पद्धतियां : -

व्यवसाय एवं उद्योग के विभिन्न प्रकार के होते हैं और उनका लेखा-जोखा भी उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग ढंग से रखा जाता है परंतु सभी में लेखांकन सिद्धांत एक ही प्रयुक्त होते हैं किंतु व्यवसाय की प्रकृति उसका आकार इसकी आवश्यकता तथा उसके विशिष्ट स्थिति आदि के कारण लागत लेखांकन पद्धतियो में विभिनता पाई जाती है यहां स्मरणीय बात यह है कि पद्धतिया की विभिनता का आशय सिद्धांतों की विभिन्नता है विभिन्न व्यवस्थाओं में काम आने वाली विभिन्न लागत पद्धतियां निम्नलिखित है

1. इकाई अथवा उत्पादन लागत पद्धति, 

यह पद्धति उन निर्माण उद्योगों में प्रयुक्त होती है जहां एक ही प्रकार की वस्तु का निरंतर उत्पादन होता रहता है तथा निर्मित वस्तु की सभी इकाइयों एक समान होती है और उत्पादन बड़े पैमाने पर होते हैं

जैसे : - सीमेंट उद्योग, कोयला उद्योग, एक उत्पादन, आटा उद्योग, कागज उद्योग, शराब भाटिया आदि इनमें प्रति इकाई लागत प्रति टन, प्रति मीटर, प्रति क्विंटल, प्रति हजार ज्ञात की जाती है

2. उप कार्य लेखा पद्धती, 

 हमें एक ग्राहक से प्राप्त आदेश के अनुसार कोई कार्य पूर्णठेकेदार या वे उत्पादक जो प्राप्त आदेश के आधार पर कार्य करते हैं लागत की इसी पद्धति को अपनाते हैं जब करना होता है तो कार्य आदेश संबंधी लागत ज्ञात करने के लिए इस पद्धति को अपनाया जाता है

                                                            दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि ऐसे कार्य जो अपने आप में संपूर्ण हो उनकी लागत की गणना करने के लिए इस पद्धति का प्रयोग किया जाता है इसे ठेका लागत पर पद्धति आदेश लागत पद्धति भी कहते हैं प्रति मुख्य रूप से भवन निर्माण, जहाज, प्रिंटिंग प्रेस आंधी व्यवस्थाओं में प्रयुक्त होती है

3. सीमांत लागत पद्धति, 

किस पद्धति के अंतर्गत वस्तु की सीमांत लागत ज्ञात की जाती है सीमांत लागत के अंतर्गत केवल वे ही व्यय जोड़े जाते हैं जो कि उत्पादन कार्य के लिए किए जाते हैं जो व्यय वर्तमान में नहीं करने पड़ते हैं अर्थात जो कर दिए गए होते हैं उन्हें शामिल नहीं किया जाता है संक्षेप में समस्त परिवर्तनशील व्यय के आधार पर ज्ञात की गई लागत सीमांत लागत कहलाती है इस पद्धति का प्रयोग कब किया जाता है जब उत्पादन की इकाइयों में अस्थिरता होते हैं

4. प्रक्रिया लागत पद्धति, 

प्रक्रिया लागत पद्धति का प्रयोग ऐसे व्यवसाय में होता है जहां एक वस्तु का निर्माण कई विधियों से गुजरने के बाद होता है तथा प्रत्येक विधि एक दूसरे से अलग की जा सकती है इसके अंतर्गत एक विधि का निर्मित माल दूसरी विधि के लिए कच्ची सामग्री का काम करता है प्रत्येक विधि की लागत अलग-अलग ज्ञात की जाती है इस पद्धति का उपयोग साबुन तेल घी कपड़ा तथा रासायनिक पदार्थ के निर्माण में किया जाता है

5. परिचालन लागत पद्धति,

 इस पद्धति का प्रयोग ऐसे व्यवसाय में होता है जहां वस्तु का उत्पादन नहीं होता है बल्कि सेवाएं प्रदान की जाती है

जैसे : - रेल मोटर बिजली तथा जल प्रदाय संस्थाएं इस पद्धति का प्रयोग करती है इसमें लागत की गणना प्रति टन  किलोमीटर है प्रति यात्री किलोमीटर प्रति विद्युत इकाई तथा प्रति गैलन पानी ज्ञात की जाती है

6. संचालन क्रियाया लागत पद्धति, 

इस पद्धति का प्रयोग यांत्रिक निर्माण में होता है सामान्यता एक वस्तु के निर्माण में कई संचालन क्रियाएं आवश्यक होती है

जैसे :- साइकिल के मेडिगाड बनाने के लिए सर्वप्रथम इस्पात की चदरे काटी जाएगी उन्हें डिजाइन के अनुसार ढाला जाएगा और तब उन पर पॉलिश की जाएगी इसमें प्रत्येक कार्य किया है और प्रतिक्रिया का लागत बी व्यय ज्ञात किया जा सकता है

7. विभागीय लागत पद्धति, 

जब एक ही उद्योग में अनेक वस्तुओं का निर्माण होता है तो प्रत्येक विभाग की लागत अलग-अलग निकालना आवश्यक होता है इनके अंतर्गत कुल खर्चों का विभाजन विभिन्न विभागों के बीच एक निश्चित आधार पर किया जाता है और प्रति इकाई लागत अलग-अलग ज्ञात की जाती है

जैसे : - किसी फर्नीचर के कारखाने में मेज, कुर्सी, पलंग आदि का निर्माण किया जाता है यहां प्रत्येक वस्तु की लागत अलग-अलग निकाली जाती है

8. समूह लागत पद्धति, 

जहां किसी कार्य को विभिन्न श्रमिक समूहों में बांट दिया जाता है और प्रत्येक समूह का लागत व्यय किया जाता है वहां यह पद्धति प्रयोग में लाई जाती है इस पद्धति का प्रयोग औषधि उद्योग, बिस्किट उद्योग आदि में किया जाता है

9. सामान लागत पद्धति, 

दिल किसी प्रकार के उद्योग चलाने वाले कई उत्पादक मिलकर आपस में अनुभव का लाभ उठाने के लिए किसी विधि का प्रयोग करने का निर्णय लेते हैं तो इसे सामान लागत पद्धति कहते हैं

10. लागत योग पद्धति, 

कुछ उत्पादन कार्य ऐसे होते हैं जिनकी लागत का अनुमान पहले से ही कर लिया जाना कठिन होता है ऐसे कार्यों के संबंध में ठेकेदार से यह तय कर लिया जाता है कि उत्पादन की जो लागत आएगी उसका एक निश्चित प्रतिशत उसे लाभ के रूप में दिया जाएगा तथा लागत का भुगतान तो किया जाएगा ही इस पद्धति का सबसे बड़ा दोष यह है कि ठेकेदार अधिक लाभ कमाने के लिए लागत में बनावटी ढंग से वृद्धि कर देता है जो कि गलत है

11.मूल्य लागत विधि, 

इस पद्धति के अंतर्गत अनुभवी व्यक्तियों तथा ठेकेदारों द्वारा बड़े-बड़े कार्यों की लागत के लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं इस मूल्य में कुछ लोग को जोड़कर ठेकेदार को कार्य करने के लिए किया जाता है जो ठेकेदार लक्ष्य लागत से भी कम लागत पर कार्य पूरा करता है उससे बचाई गई राशि का 1 भाग बोनस के रूप में दिया जाता है


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