वित्तीय विश्लेषण का अर्थ तथा उद्देश्य एवं क्षेत्र
वित्तीय विश्लेषण का अर्थ : -
वित्तीय विवरण के विश्लेषण का आशय व्यवसाय की वित्तीय स्थिति के अध्ययन से है लाभ हानि आर्थिक चिट्ठा एवं संचालको व अंकेक्षक की रिपोर्ट के आधार पर यह तय करना कि कंपनी की वित्तीय स्थिति कैसी है भविष्य में प्रगति की संभावनाएं कैसी है उपर्युक्त प्रश्नों के जवाब जानने के लिए वित्तीय विवरणों के विभिन्न मदों का गहन अध्ययन अनुपातों अथवा अनुचित प्रणाली के द्वारा किया जाना ही वित्तीय विश्लेषण कहा जाता है
विश्लेषण के लिए यह आवश्यक है कि वित्तीय विवरणों में दी गई मदो को उचित शीर्षक व उपशीर्षक में विभाजित कर लिया जाए
जैसे : - संपत्तियों को स्थाई या अस्थाई शीर्षको में बदलना दायित्व को अस्थाई एवं चालू शीर्षको को में बदलना व्ययों को संचालन एवं संचालन में बदलना इत्यादि इन्हीं विश्लेषण के आधार पर कंपनी की उन्नति के संबंध में सही निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं इन्हीं के आधार पर भविष्य की योजनाएं बनाई जाती है
वित्तीय विश्लेषण का उद्देश्य : -
वित्तीय विश्लेषण तथा संस्था की वित्तीय स्थिति एवं लाभदायक ताकि जानकारी करने में सहायक होता है इसके लिए अनुपात विश्लेषण का सहारा लिया जाता है वित्तीय स्थिति एवं लाभदायकता की जानकारी के लिए संस्था के विभिन्न वर्षो के वित्तीय विवरणों के आधार पर विभिन्न प्रकार के अनुपातों की गणना की जाती है और यह निर्धारित किया जाता है कि संस्था की वित्तीय स्थिति एवं लाभदायकता की प्राकृतिक बढ़ने की है या घटने की है या फिर स्थित है प्रवृत्ति अनुपात के आधार पर संस्था के भविष्य के संबंध में भी अनुपात लगाया जा सकता है
स्थिति एवं लाभदायकता की जानकारी प्राप्त
2.कंपनी की वित्तीय स्थिति को नियंत्रित करने में सहायता करना
3.कंपनी की वित्तीय प्रवृत्ति के संबंध में उचित विचारधारा बनाने में सहायक होना
4. प्रवाह विवरण के निर्माण में सहायक होना
5. कोष प्रवाह विवरण में निर्माण में सहायक होना
6.जटिल राशि को सरलतम रूप प्रदान करना ताकि गणना की जटिलता नहीं रहे
7. प्रबंधकों को प्रशासकीय वित्तीय एवं संचालन नीतियों के औरचित्य की जानकारी देना
8. संस्था की भावी संभावनाओं का अनुमान लगाना
9. संस्था की अल्पकालीन एवं दीर्घकालीन शोधन क्षमता का निर्धारण करना
10. संस्था की कमजोरियों पर प्रकाश डालना
वित्तीय विश्लेषण का निम्नलिखित क्षेत्र है
1. लाभदायकता, इस कार्य क्षेत्र के अंतर्गत या ज्ञात किया जाता है कि व्यवसाय में विनियोजित पूंजी की लाभदायकता क्या है यह पर्याप्त है या नहीं क्या इस पूंजी को दूसरी जगह विनियोजित करप्रबंध की कार्य कुशलता में वृद्धि कर अधिक लाभ उपार्जित किया जा सकता है
2. सुरक्षा व शोधन क्षमता, इस कार्य क्षेत्र के अंतर्गत यह ज्ञात किया जाता है कि नियोजित पूंजी एवं ऋण किस हद तक सुरक्षित है क्या कंपनी अपने उत्तमर्णो को ऋण चुकाने की स्थिति में है क्या कंपनी लाभ की मात्रा में कुछ कमी आने पर लाभांश झुकाने या ऋण की अदायगी की स्थिति में है कंपनी के पास कौन-कौन से तरल व अचल संपत्ति है क्या उसकी कार्यशील पूंजी पर्याप्त है क्या कार्यशील पूंजी में कमी आने पर वर्तमान लाभ में कमी तो नहीं आएगी आदि
3. प्रवृत्ति, प्रवृत्ति के अंतर्गत यह देखा जाता है कि संस्था के लाभ एवं बिक्री की प्रवृत्ति क्या है नीचे गिरने की या ऊपर उठने की व्यापार प्रगतिशील है या अप्रगतिशील विनियोग से व्यापार के लाभ में वृद्धि होगी या नहीं इत्यादि
4. स्वामित्व या प्रबंध क्षमता, इसके अंतर्गत यह ज्ञात किया जाता है कि व्यवसाय का प्रबंध किनके के हाथों में है क्या वर्तमान प्रबंध को क्या हाथ में व्यवसाय सुरक्षित है संपत्तियों का प्रबंध किस प्रकार की पूंजी से किया गया है कंपनी में पूंजी की मात्रा आवश्यकता के अनुरूप है या नहीं पूंजी किन अंशो में विभाजित है अंशगत पूंजी व ऋणगत पूंजी का क्या अनुपात है व्यवसाय के उतमर्णो, लेनदार को उनके ऋण की सुरक्षा के लिए कौन से संपत्ति बंधक के रूप में दी गई है आदि
5. वित्तीय शक्ति, यह पता लगाना कि संस्था की वित्तीय स्थिति सुधृंन है या नहीं क्या वितिय स्थिति को मजबूत करने के लिए संस्था आंतरिक प्रबंध का सहारा लेती है क्या संस्था कि भविष्य में विस्तार की योजना है एवं इस योजना की पूर्ति हेतु स्रोत क्या है कम्पनी की ख्याति कैसा है आदि
उदाहरण : - यदि विगत 5 वर्षों की बिक्री एवं सकल लाभ का प्रवृत्ति अनुपात वृद्धि का संकेत देता है तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आने वाले वर्ष में भी बिक्री एवं लाभ की मात्रा में वृद्धि होगी लेखांकन अनुपात के महत्व को ध्यान में रखते हुए लेखापाल को समुचित समय पर उचित प्रारूप में अनुपातों की गणना कर लेनी चाहिए ताकि इन्हें सही समय पर प्रबंधकों के समक्ष रखा जा सके और उन्हें प्रबंधकिय निर्णय ले सके
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