प्रबंधकीय लेखाविधि नियम एवं सिद्धांत
प्रबंधकीय लेखाविधि की नियम : -
समय-समय पर परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न समस्याओं के निराकरण हेतु जो कृतियां प्रयोग में लाई जाती है, उन्हें प्रस्थाये करते हैं! फनी विषयों की तरफ प्रबंधकीय लेखाविधि के खास नियम या सिद्धांत नहीं है, इसके अंतर्गत समयानुसार विकसित कुछ परंपराएं हैं जो प्रबंध की मदद करती है यह नियम या प्रस्थाये निम्नलिखित है,
1. उत्तरदायित्व की प्रथा, इस प्रथा के अनुसार संगठन के प्रत्येक स्तर में ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति की जानी चाहिए जो संबंधित कार्य के दायित्व को भलीभांति समझ सक सिद्धांत का मुख्य उद्देश्य है कि व्यक्ति कोजहां कुछ कार्यों को करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए तो वहीं कुछ कार्यों को ना करने के लिए प्रेरित किया जाए परंतु इस प्रथा के अंतर्गत उत्तरदायी व्यक्ति को ढूंढा जा सके इस प्रथा के अंतर्गत केवल यही नहीं पता चलता है कि संस्था में क्या हो रहा है बल्कि यह भी पता चलना चाहिए कि उसके लिए कौन व्यक्ति उत्तरदायी है!
2. एकीकरण की परंपरा, इस परंपरा के अनुसार समस्त प्रबंध लेखांकन सूचनाओं का एकीकरण किया जाता है ऐसा करने से उपलब्ध तथ्यों का भरपूर लाभ उठाया जा सकता है तथा लेखांकन सेवा न्यूनतम लागत पर उपलब्ध कराई जा सकती है
3. उपयुक्त साधन की परंपरा, लेखांकन सूचनाओं के संकलन अभिलेख और प्रस्तुतीकरण में सर्वाधिक उपयुक्त विषयों का चुनाव किया जाना चाहिए इसका अर्थ यह हुआ कि जहां तक संभव हो यांत्रिक करण को अपनाया जाए किंतु यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यवसाय में कंप्यूटर का प्रयोग किया जाए चयनित मशीनें ऐसी होनी चाहिए जिन्हें मितव्ययिता पूर्वक लगाया जा सकता है तथा जिनसे व्यवसायिक समस्याओं का हल निकाला जा सके
4. दूरदर्शिता की परंपरा, प्रबंध लेखांकन से संबंधित समस्याओं का पूर्वानुमान कर उनको रोकने का प्रयास किया जाना चाहिए इसके लिए भविष्य की ओर दृष्टि रखने की प्रवृत्ति होनी चाहिए तथा वास्तविक लाभ दो का उपयोग केवल प्राप्त उपलब्धियों के माप के लिए ही किया जाना चाहिए इससे बजटरी नियंत्रण एवं प्रमाप लागत की महत्व झलकती है!
5. प्रबंध का अपवाद प्रथा, इस प्रथा के अनुसार प्रबंध को अपना ध्यान केवल महत्वपूर्ण मामलों पर केंद्रीत करना चाहिए और जो मामले साधारण हो उन्हें नियंत्रित मान लिया जाता है वे क्रियाएं जो साधारण रूप में गत वर्ष की तरह योजनानुसार संचालित हो रही हो विशेष ध्यान देने की जरूरत नहीं होती हैं परंतु प्रबंधकों के समक्ष न्यूनतम सूचनाएं इन प्रकार प्रस्तुत की जाती है ताकि सभी महत्वपूर्ण सूचनाएं उनके सामने आ जाए साथ ही उन्हें पढ़ने व समझने में कम समय लगे तथा आवश्यक कार्यवाही हेतु उनके पास कुछ समय बचा रहे हैं
6. लोचनीयत्ता की परंपरा, लेखांकन सूचना है अभिलेख प्रतिवेदन विवरण आदि की अभिकल्पना व्यवसाय अथवा समस्या विशेष की आवश्यकता के अनुरूप होती है दूसरे शब्दों में लेखांकन पद्धति मैं लोचनीयत्ता होनी चाहिए जब किसी विशेष समस्या का समाधान निकालना हो तो लेखांकन पद्धति समंक उपलब्ध कराने योग होनी चाहिए इसके लिए दोहरे लेखे प्रविष्टि प्रणाली का भी प्रयोग किया जा सकता लेखांकन सकता क्रियात्मक शोध सिद्धांतों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जाना चाहिए आवश्यकतानुसार लेखांकन सूचना को रूपांतरित कर प्रयोग में लाना चाहिए
7. मुख्य क्षेत्र की प्रथा, इस प्रथा के अंतर्गत कुछ ऐसे मुख्य संचालक क्षेत्र होते हैं जिनकी सफलता या असफलता पर पूरे व्यवसाय की सफलता या असफलता निर्भर करती है लेखांकन सूचना प्रणाली कैसी होनी चाहिए ताकि इन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जा सके उदाहरण के लिए कुल कर्मचारियों का कुछ ही प्रतिशत औद्योगिक संबंधों को खराब कर देता है वस्तुओं के गुणों में कुछ प्रतिशत की कमी अधिकांश ग्राहकों को असंतुष्ट कर देती है इन्हीं कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र पर नियंत्रण कर के प्रबंध व्यवसाय की सीमाओं का निराकरण कर सकता है
8. व्यक्तिगत संपर्क की परंपरा, विभागीय प्रबंधको फोरमैनो व अन्य के साथ व्यक्तिगत संपर्क को प्रतिवेदन और विवरणों से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता इसका अर्थ यह हुआ कि व्यक्तिगत संपर्क नियोजन समन्वय अभिप्रेरणा तथा संवहन प्रक्रिया में सुधार लाता है जिससे लागत नियंत्रण का उद्देश्य पूरा होता है अतः उत्पादन विक्रय एवं अन्य क्रियात्मक कर्मचारियों से संपत्तियों आदि के अतिरिक्त अन्य तरीकों से व्यक्तिगत संपर्क आवश्यक है
9. पुनर्मूल्यांकन लेखांकन की प्रथा, सही अर्थ में पूंजी को इन फैक्ट में रखकर लाभ अर्जित करना चाहिए अतः अत्यधिक मुद्रास्फीति के समय पुनर्मूल्यांकन लेखा विधि के सिद्धांतों का प्रयोग किया जाना चाहिए दूसरे शब्दों में परिवर्तन की स्थिति में मुद्रा मूल्यों का समायोजन करके ही लाभ की गणना की जानी चाहिए किंतु अभी इस प्रणाली को सामान्य स्वीकृति प्रदान नहीं हुई है वर्तमान में मुझे अफरीदी को ध्यान में रखते हुए अधिकांश लेखापाल विचारधारा की ओर सोचने लगे
10. स्रोतों पर नियंत्रण लेखांकन की परंपरा, विभिन्न लगतो को उनके उदय होने के बिंदुओं पर ही नियंत्रित किया जाना चाहिए अर्थात जब किसी वस्तु या सेवा के उत्पादन पर कोई व्यय किया जाता है उसी समय पर नियंत्रण करना उपयुक्त होता है ऐसा करने के लिए विभागीय परिचालन विवरणों एवं लागत लेखांकन पद्धति का लागू किया जाना आवश्यक है इसे उद्गम स्थान पर नियंत्रित लेखांकन के नाम से भी जाना जाता है
प्रबंध लेखा विधि के सिद्धांत : -
प्रबंध लेखांकन के निम्नलिखित सिद्धांत है
1. क्षेत्र का सिद्धांत, प्रबंध लेखांकन संबंधी आंकड़ों का क्षेत्र उन्हें प्राप्त करने वाले व्यक्तियों के अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं होना चाहिए विभिन्न स्तरों पर कार्यरत प्रबंधकों को केवल में ही आंकड़े भेजे जाने चाहिए अथवा वही सूचनाएं मांगी जानी चाहिए तो उसे अधिकार क्षेत्र में हो जिससे वह अपने कार्य का निष्पादन सही ढंग से कर सकें
2. माप का सिद्धांत, प्रबंधकों की श्रृंखला में प्रबंध लेखांकन सूचना को प्राप्त करने वाले अधिकारी की स्थिति जितनी हिंदी की होती है उनके कार्य का माप उतना ही प्रत्यक्ष होना चाहिए प्रत्यक्ष रूप से कार्य करने वाले कर्मचारी अपने कार्य तथा उससे संबंधित क्रियाओं को प्रत्यक्ष माप में ही ठीक प्रकार से समझ पाता है
3. परिशुद्धता एवं समय का सिद्धांत, प्रबंधकीय लेखांकन में प्रयुक्त किए जाने वाले आंकड़ों का तो शुद्ध होना आवश्यक है साथ ही उनका समुचित समय पर उपलब्ध होना कम महत्वपूर्ण नहीं है
4. समय अवधि का सिद्धांत, प्रबंधकों के बीच जिस व्यक्ति की स्थिति जितनी ऊंची होती है उसके समक्ष प्रस्तुत किए जाने वाले विवरणों की समय अवधि उतनी ही अधिक होती है उदाहरण के लिए उच्च प्रबंध को मासिक या त्रैमासिक सूचनाओं की आवश्यकता होती है जबकि मशीनों पर कार्यरत व्यक्ति के लिए सप्ताहिक या मासिक परिणामों की अपेक्षा प्रति घंटा या प्रति मिनट के परिणाम सूचना उपयोगी होते हैं
5. नियमितता का सिद्धांत, निर्णय लेने वाले अधिकारियों को संस्था में होने वाले प्रगति एवं कार्यकलापों के संबंध में नियमित सूचना की आवश्यकता पड़ती है अतः संबंधित अधिकारियों के पास जना का प्रेरण नियमित रूप से किया जाना चाहिए जिन प्रबंधकों के पास आंकड़े प्रति सप्ताह भेजे जाते हैं उन्हें वे आंकड़े अगले सप्ताह के प्रथम दिन प्राप्त होने चाहिए जिन प्रबंधकों के पास मासिक आंकड़े भेजे जाते हैं उन्हें वे आंकड़े अगले माह के प्रथम सप्ताह में प्राप्त हो जाने चाहिए वार्षिक आंकड़ों के प्राप्त करता हूं के पास अगले वर्ष के प्रथम माह में पहुंच जाने चाहिए
6.प्रमापो की सहमति का सिद्धांत, समुचित नियोजन के उद्देश्य के प्रमापो एवं वास्तविक निष्पादनओं की तुलना आवश्यक होती है किंतु वे प्रभाव तभी उचित माने जा सकते हैं जब उन्हें कार्यरत व्यक्तियों की स्वीकृति मिल गई हो संस्था में प्रत्येक स्तर पर कर्मचारियों द्वारा अपने लिए उचित मानक निर्धारित कर लिए जाते हैं जिन्हें उचित तथा तर्कसंगत समझा जाता है
7. औचित्य का सिद्धांत, चुकी प्रबंधकों के लिए आवश्यक आंकड़े काफी महत्वपूर्ण होते हैं पता आंकड़े उपलब्ध कराने वाले व्यक्ति को निष्पक्ष होना चाहिए साथ ही किसी प्रकार के पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होनी चाहिए क्योंकि आंकड़ों को किसी विशेष दृष्टिकोण से प्रभावित कर प्रस्तुत करना तो आसान है किंतु ऐसा करने से प्राप्त निष्कर्श भ्रामक हो जाएगी
8. तुलना का सिद्धांत, किसी भी एक सूचना से उपयुक्त निर्णय नहीं लिया जा सकता है इसका महत्व या उपयोग जानने के लिए अन्य तुलनात्मक समंको को की आवश्यकता होती हैं तुलनात्मक समंक उसी उद्देश्य प्रस्तुति तथा विभिन्न समयो पर उसी प्रकार का होना चाहिए ताकि सही निर्णय लिया जा सके यह तुलना बजट से या उसी प्रकार का कार्य करने वाली अन्य संस्था से या उसी संस्था की गत अवधि से हो सकती है
9. परिभाषा के परिशुद्धता का सिद्धांत, प्रबंध लेखांकन संबंधित प्रत्येक विवरण शुद्धता पूर्वक परिभाषित होना चाहिए प्रबंध लेखापाल को प्रत्येक विवरण इस प्रकार तैयार करना चाहिए ताकि उन्हें अध्ययन करने वाला व्यक्ति उनके आंकड़ों से सही निष्कर्ष निकाल सके इसके लिए यदि किसी अपवाद इस स्थिति में छोड़ा गया है या सम्मिलित किया गया है तो उसके लिए उसे टिपनी दे देना चाहिए
10. प्रभावशीलता का सिद्धांत, प्रबंधक लेखांकन की सूचना तभी महत्वपूर्ण होगी जब उनका समुचित उपयोग हो दूसरे शब्दों में उपलब्ध सूचनाओं का जीतने योग्य व्यक्तियों द्वारा जितनी अधिक वैज्ञानिक रितियो का प्रयोग करते मनुष्य व्यवहार का ध्यान रखकर उपयोग किया जाएगा उतना ही अधिक प्रभावी होगा तथा उसने ही कम प्रयास से उतनी ही अधिक परिणाम प्राप्त हो सकेंगे अनेक संस्थाओं में औसत से कम प्रयासों द्वारा और सबसे अधिक परिणाम प्राप्त कर लिए जाते हैं
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