प्रबंधकीय लेखाविधि की प्रकृति या विशेषताएं एवं क्षेत्र
प्रबंधकीय लेखांकन की प्रकृति एवं विशेषताएं
प्रबंध लेखांकन अनेक वित्तीय व गैर वित्तीय समंको प्रणालियों एवं पद्धतियों से युक्त एक समन्वित पद्धति है अर्थशास्त्र सांख्यिकी अंकेक्षक व्यवसाय मनोवैज्ञानिक आदि अनेक विषयों का व्यवहारिक प्रयोग इसके अंतर्गत किया जाता है इसके अलावा लागत लेखांकन बजट नियंत्रण पद्धति विश्लेषण आदि तकनीकी का प्रयोग एवं अंतर संबंध प्रबंध लेखांकन की रूपरेखा का निर्माण करता है
व्यवसायिक सूचनाएं अलग-अलग उद्देश्यों से एकत्रित की जाती है तथा बाद में इन्हें धीरे-धीरे विभिन्न प्रतिवेदनो मैं संपादित किया जाता है इस प्रतिवेदनो में मुख्य है
वित्तीय लेखे तथा सांख्यिकी प्रतिवेदन किंतु इन प्रतिवेदनो में भूतकालीन तथ्य ही प्रदर्शित किए जाते हैं लेकिन प्रबंध लेखांकन का उद्देश्य मात्र भूत कालीन तथ्यों का संग्रह करना ही नहीं होता है क्योंकि भूत कालीन तथ्यों में मात्र यह जानकारी होती है कि क्या घटित हुआ
कार्यकुशलता का वांछित अस्तर क्या होनी चाहिए था आदि तथ्यों पर प्रकाश नहीं डालते अतः अपेक्षित परिणामों को प्राप्त करने के लिए कुशलता का प्रमाप निर्धारित किया जाना आवश्यक है प्रमापित स्तर के साथ वास्तविक परिणामों की तुलना करके कुशलता के स्तर को ऊंचा उठाया जा सकता है
उदाहरण:प्रमाप लागत पद्धति एवं बजट नियंत्रण प्रणाली का आधार भी प्रामाप ही होता है
प्रबंध लेखांकन पद्धति में लेखांकन की परंपरागत विचारधारा में संशोधन लाया जाना आवश्यक प्रतीत होता है परंपरागत लेखांकन पद्धति में लेखा पुस्तकों के संतुलन पर विशेष बल दिया जाता है जबकि प्रबंधकीय कुशलता के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाता है प्रबंध लेखांकन के अंतर्गत प्रबंध लेखाकार अपने ज्ञान व अनुभव के आधार पर ऐसी सूचनाएं का सृजन करता है जो प्रबंध को अतिरिक्त जानकारी देती है जिससे प्रबंधको को प्रबंध संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों में सहायता मिलती है ध्यान देने योग्य बात यह है कि सूचना निर्धारित समय के अंदर ही उपलब्ध होनी चाहिए उपर्युक्त विचारों के आधार पर प्रबंध लेखांकन की निम्नलिखित विशेषताएं सामने आती है
1. महत्वपूर्ण निर्णयों में सहायक, प्रबंधकीय लेखा विधि व्यवसाय से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णयों में सहायक होती है यह महत्वपूर्ण सूचनाओं को प्रदान करती है जिसके आधार पर निर्णय सुगमता से लिया जाता है इस ख्याल से ऐतिहासिक आंकड़ों का भी अध्ययन किया जाता है इसके अंतर्गत महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय वैकल्पिक निर्णयों के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाता है
2. भविष्य से संबंधित होना, प्रबंधकिय लेखा विधि भविष्य संबंधित होती है यह भविष्य का पूर्वानुमान करती है और जब वह भविष्य वर्तमान बनकर हमारे समक्ष आता है तो व्यवसाई क्रियाओं की उपलब्धियों आलोचनात्मक जांच की जाती है अर्थात इन पूर्व अनुमानों की वास्तविक परिणामों से तुलना की जाती है इससे प्रबंध को प्रभावी नियंत्रण में सहायता मिलती है
उदाहरण : बजटरी नियंत्रण प्रणाली, प्रमाप, परिव्यय प्रणाली सभी पूर्व अनुमान के आधार पर तैयार की जाती है
3. उद्देश्यों की प्राप्ति, प्रबंधकिय लेखा विधि में लेखांकन सूचनाओं का इस प्रकार प्रयोग किया जाता है कि संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके नियोजन करते समय एवं उद्देश्यों को निर्धारित करते समय ऐतिहासिक आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है निर्धारित प्रमाप एवं कार्य की उपलब्धि की तुलना करके विभिन्न विभागों की निष्पादन क्षमता के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है यदि खास विभाग की निष्पादन क्षमता प्रमाणित क्षमता से कम साबित हुई तो उसे सुधारने के लिए उपाय किए जा सकते हैं
4. कार्य क्षमता में वृद्धि , वर्तमान यूग प्रतियोगिता का यूग है इस युग में किसी भी संस्था को अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए उसकी कार्यक्षमता में वृद्धि किया जाना नितांत आवश्यक है प्रबंधकीय लेखांकन के प्रयोग से संस्था के कार्य क्षमता को बढ़ाया जा सकता है इसके लिए पहले संस्था के लक्ष्य को निर्धारित किया जाता है और तब उसे प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है कार्य क्षमता को बढ़ाने के लिए सुधारात्मक उपाय ढूंढे जाते हैं कार्य मूल्यांकन के परिणाम स्वरूप हर कोई अपने स्तर से लागत कम करने का प्रयास करेगा
5. चयनात्मक प्रकृति, प्रबंधकीय लेखा विधि चयनात्मक प्रकृति की होती है इसके अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ योजनाओं एवं अत्यधिक लाभदायक तथा सर्वश्रेष्ठ विकल्पों का विश्लेषण व तुलनात्मक अध्ययन करके चुनाव किया जाता है प्रबंध के समक्ष मात्र आवश्यक सूचनाओं का ही संवहन किया जाता है
6. कारण एवं प्रभाव विश्लेषण, प्रबंधकिय लेखा विधि मैं केवल यह नहीं देखा जाता है कि क्या हुआ बल्कि यह ज्ञात किया जाता है कि परिणाम विशेष किन कारणों से प्रभावित है तथा इससे सुधार किस प्रकार किया जाता है वित्तीय लेखांकन संस्था के लाभ अथवा हानि प्रदर्शित करने तक ही सीमित होता है किंतु प्रबंधकिय लेखा विधि एक कदम और आगे बढ़ती है अर्थात अर्थात यह लाभ अथवा हानि के कारणों एवं प्रभावों को भी स्पष्ट करता है इसके अंतर्गत लाभ की तुलना बिक्री विभिन्न व्यय चालू संपत्ति देय ब्याज पूंजी इत्यादि के साथ ही जाती है
7. यह आंकड़े प्रदान करती है कि निर्णय नहीं, प्रबंधकीय लेखा विधि निर्णय के संबंध में आंकड़े प्रदान करती है निर्णय नहीं जिसके आधार पर व्यवसायिक निर्णय संभव हो पाते हैं
8. प्रबंध लेखांकन में वित्तीय लेखांकन की भांति निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया, प्रबंध लेखांकन का कार्य प्रबंध किय दक्षता मैं वृद्धि करना होता है इसके अंतर्गत सम्मानित सभी कृति नियमों से अलग अपना पृथक नियम बना सकता है तथा सूचनाओं के प्रस्तुतीकरण में अपने अनुभव ज्ञान तर्क बुद्धि एवं कल्पना शक्ति से ऐसी सूचनाएं सिर्जित कर सकता है
9. विशेष तकनीकी एवं अवधारणा का प्रयोग, लेखांकन आंकड़ों को अधिक उपयुक्त बनाने के लिए प्रबंध के लेखा विधि में केवल विशेष तकनीकी एवं अवधारणाओं का ही प्रयोग किया जाता है
उदाहरण : इसके अंतर्गत वित्तीय योजनाओं एवं विश्लेषण प्रमाप लागत कंट्रोल लागत एवं नियंत्रण लेखांकन आदि का प्रयोग किया जाता है
10. यह प्रबंधकिय आवश्यकताओं के प्रति अत्यधिक सचेत है, प्रबंध किसी भी संस्था का मस्तिक होता है अब तक किसी भी संस्था के सही संचालन हेतु प्रबंध आवश्यकताओं के प्रति प्रबंध किय लेखा विधिक अधिक सचेत होती है प्रबंधकिय लेखा विधि प्रबंध करने में सहायता प्रदान करती है इसके अंतर्गत यूरोनोवा प्रतिवेदन ओं की तैयारी के अनुसार किया जाता है
प्रबंधकीय लेखा विधि का निम्नलिखित क्षेत्र है,
1. लागत लेखाविधि, लागत लेखांकन के अंतर्गत उन लेखांकन पद्धतियों को सम्मिलित किया जाता है जिसके आधार पर उत्पादन संबंधित वास्तविक व्ययो को विभिन्न वर्ग में लिपिबद्ध किया जाता है लागत लेखा विधि से विभिन्न उत्पादों की लागत ज्ञात की जाती है इसमें विभिन्न उपकरणों विधियों की लागत ज्ञात करने के लिए वित्तीय आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है प्रमाप लागत विधि सीमांत लागत विधि अवसर लागत विधि यह सारे प्रबंध को व्यवसाय के नियोजन बनाने में सहायता प्रदान करती है
2. लागत नियंत्रण विधि, आज प्रत्येक व्यवसायिक संस्था अपने लाभ की मात्रा बढ़ाने या व्यवसायिक प्रतियोगिता में सफलता प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध है जिसके लिए उसे लागत नियंत्रण पर ध्यान देना ही होता है इसके अंतर्गत कार्य पूरा होने पर पूर्व निर्धारण बजट वास्तविक लागत की तुलना करना आता है व्यवसाय क्रियाओं पर नियंत्रण करने के लिए बजट नियंत्रण तथा परीव्यय दोनों ही युक्तियों का प्रयोग किया जाता है
3. सामान्य लेखा विधि, सामान्य लेखा विधि का आशय उन लेखा विधि से है जिसके अंतर्गत व्यवसाय से संबंधित आय व्यय स्टॉक रोकड़ की प्राप्ति एवं भुगतान आदि शामिल है इसे वित्तीय लेखांकन या ऐतिहासिक लेखांकन भी कहते हैं इसके अंतर्गत दिन प्रतिदिन के लेखांकन व्यवहार आते हैं जिनकी सहायता से अंतिम खाते तैयार किए जाते हैं वित्तीय लेखा विधि के माध्यम से तैयार किए गए लेखा विवरण प्रबंध लेखांकन का प्रमुख अंग एवं आधारशिला होते हैं
4. ऑफिस सेवा, कुछ परिस्थितियों में ऑफिस सेवा की व्यवस्था प्रबंध लेखापाल के अधीनस्थ ही रहती है इसके अंतर्गत सेवाओं का संवहन डाक आवश्यक सामान की पूर्ति की जाती है प्रबंध लेखापाल कार्यालय में प्रयुक्त होने वाली आवश्यक मशीनों की उपयोगिता के संबंध में प्रबंध को अवगत कराता है तथा प्रबंध आवश्यकता अनुसार मशीनों का करें कर कार्यालय सेवा को गति प्रदान करता है
5. बजटन तथा पूर्वानुमान, कार्य क्षेत्र के अंतर्गत विभिन्न व्यवसायिक पहलुओं के संबंध में पूर्वानुमान करना एवं विभिन्न विभागों के लिए अलग-अलग बजट बनाना आता है बजट एक ऐसी तकनीक है जिसमें संस्था की नीतियों व योजनाओं को मुद्रित मदो के रूप में व्यक्त किया जाता है बजट बनाकर विभिन्न अधिकारियों के उत्तरदायित्व निर्धारित किए जाते हैं वास्तविक परिणाम ज्ञात होने पर उनकी तुलना बजट में निर्धारित है तथ्यों से की जाती है
6. लागत और सांख्यिकी, आज प्रत्येक क्षेत्र में सांख्यिकी कृतियों का व्यापक ढंग से प्रयोग किया जा रहा है प्रबंध लेखांकन में भी लागत नियंत्रण के लिए सांख्यिकी कृतियों का प्रयोग होना है अर्थात इसके अंतर्गत विभिन्न विभागों को पूरक सांख्यिकी एवं विश्लेषणात्मक सेवाएं प्रदान की जाती है
7. स्कंध नियंत्रण, यहां इन्वेंटरी का तात्पर्य के स्कंध एवं निर्मित /अर्ध निर्मित माल के स्कंध से है व्यवसाय की सही आय जानने के लिए स्कंध नियंत्रण स्कंध नियंत्रण आवश्यक होता है स्कंध नियंत्रण से उत्पादन की लागत नियंत्रित होती है प्रबंध को चाहिए कि वह स्टॉक के विभिन्न स्तरों को निर्धारित करें
जैसे न्यूनतम स्तर , अधिकतम स्तर , पुण: आदेश अस्तर ताकि स्टॉक नियंत्रित हो सके स्टॉक को नियंत्रित करने के लिए प्रभावपूर्ण इन्वेंटरी नियंत्रण आवश्यक है प्रबंध लेखापाल प्रबंध को यह पथ प्रदर्शन करेगा कि सामग्री का क्रय कहां कब और कितना करें इस प्रकार स्कंध नियंत्रण प्रबंध के निर्णय में मदद प्रदान करता है
8. निर्णय लेखांकन, किसी भी संस्था में निर्णय लेना प्रबंध को का महत्वपूर्ण कार्य होता है निर्णय का तात्पर्य विभिन्न विकल्पों से सर्वश्रेष्ठ विकल्प के चुनाव से है सर्वश्रेष्ठ विकल्प का चुनाव भी एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसके लिए विभिन्न विकल्पों की तुलना करते समय अनिश्चित के तत्वों को न्यूनतम करने के लिए तथ्यों का प्रयोग करना आवश्यक होता है
9. नियंत्रण लेखांकन,नियंत्रण लेखांकन अपने आप में कोई लेखा विधि या प्रणाली नहीं है बल्कि यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें प्रबंध विभिन्न स्तर के प्रबंधक व निरीक्षकों को महत्वपूर्ण सूचना प्रदान करने के लिए तथ्यों के विश्लेषण निर्वाचन व प्रस्तुतीकरण के द्वारा अपने ज्ञान का प्रतिभा का परिचय दे सकते हैं नियंत्रण लेखांकन से व्यवसायिक गतिविधियों पर नियंत्रण रखने में काफी मदद मिलती है
10. विकास लेखांकन, विकास लेखांकन में लागत को नियंत्रित करके उसे कम से कम करने का प्रयास किया जाता है नए उत्पादक डिजाइन उत्पादन प्रणाली संबंधित शोध प्रस्तुत किए जाते हैं इनमें सफलता मिलने पर शोध कार्य को और भी विकसित करने का प्रयास किया जाता है विकास लेखांकन से इस बात की भी जानकारी होती है कि शोध कार्य से संस्था या संबंधित लोगों को लाभ हुआ या नहीं
11. अर्थशास्त्र, व्यवसाय व आर्थिक क्रियाओं में घनिष्ठ संबंध है बिना आर्थिक क्रियाओं के व्यवसाय की तुलना भी नहीं की जा सकती प्रबंध किय कार्य कुशलता में वृद्धि करने के ख्याल से प्रबंध लेखापाल के अर्थशास्त्र का सैद्धांतिक व व्यवहारिक जानकर होना चाहिए
12.कर लेखा विधि, वर्तमान जटिल कार्य प्रणाली में कर नियोजन प्रबंधक लेखांकन का एक महत्वपूर्ण अंग बन गया है कर दायित्व की गणना करने के लिए आय विवरण पत्र तैयार किए जाते हैं प्रबंध को कर भार की सूचना केंद्र सरकार राज्य सरकार व स्थानीय सता द्वारा प्रदान की जाती है इसके अंतर्गत निम्नलिखित कार्य आते हैं सरकार द्वारा लगाए गए करो के संबंध में आवश्यक विवरण तैयार करना इन विवरणों को संबंधित अधिकारियों के समक्ष सही समय पर प्रस्तुत करना और अंत में कर की रकम का भुगतान सम्मिलित होता है
NOT : BEBSIDE SARCH
Chandantirkey5567
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