संथाल हूल (1855 ई.)

 प्रश्न :-- संथाल हूल (1855 ई.)

उत्तर :-- हूल संथाली आदिवासी शब्द है जिनका अर्थ होता है क्रांति आंदोलन यानी शोषण अत्याचार और अन्याय के खिलाफ उठी बुलंद आवाज 30 जून 1855 ऐतिहासिक परिघटना संथाल हूल को इतिहासकार संथाल विद्रोह मानते रहे हैं स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह कहते हैं कि 30 जून 1855 प्रारंभ हुआ भारत में प्रथम जन संघर्ष

संथाल हूल जब आदिवासियों के हुंकार से कांप उठा अंग्रेज सहित सभी दीकुओ का कलेजा 

हूल दिवस के मौके पर बिशद कुमार याद कर रहे हैं आदिवासी योद्धाओं को जिन्होंने ने अंग्रेजों जमींदारों और महाजनों के खिलाफ लड़ाई का आगाज किया यह बात भी बता रहे हैं कि जिन परिस्थितियों के बीच संथाल हूल हुआ आज भी आदिवासियों के समक्ष मौजूद है

हूल दिवस 30 जून 1855 पर विशेष :--

30 जून 1855 को प्रारंभ हुआ संथाल हूल एक व्यापक प्रभाव वाला युद्ध था संथाल हूल इस मायने में खास था कि इसमें एक शक्ति थी जमीनदारी और महाजनों को उन्हें संरक्षण देने वाले अंग्रेज तो उसी शक्ति बहुजनों की थी। जिसका नेतृत्व आदिवासी कर रहे थे

ऐतिहासिक परिघटना

इसी के साथ अंग्रेज विद्रोह छापामार युद्ध की शुरुआत भी हुई इसकी परिणाम 26 जुलाई 1855 को संथाल हूल के सृजन करता में से प्रमुख व तत्कालीन संथाल राज के राजा सिंधो और उनके सलाहकार व सहोदर कन्हू वर्तमान झारखंड के साहिबगंज जिले के भोगनाडीह ग्राम मेंअंग्रेजों द्वारा खुलेआम पेड़ पर लटका कर फांसी दिए जाने से वे ऐसा कर रहे थे संथाल हूल को खत्म मान रहे थे लेकिन यह तो महज शुरुआत थी सामाजिक संस्कृति आर्थिक और राजनीतिक हर तरह से शोषण के खिलाफ और जल जंगल जमीन की रक्षा वह समानता पर आधारित समाज के निर्माण के लिए सिंधो कान्हो के द्वारा शुरू किया गया हूल आज भी जारी है

निष्कर्ष :-

          उपर्युक्त संथाल हूल 1855 ई.से तात्पर्य यह है कि हूल संथाली एक प्रकार का आदिवासी शब्द है जिन का अर्थ या उच्चारण करने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि यह क्रांति आंदोलन शोषण अत्याचार अन्याय के खिलाफ आवाज उठाया जाता है उसे 30 जून 1855 की ऐतिहासिक परिघटना संथाल हूल को इतिहासकार संथाल विद्रोह मानते रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजों जमींदारों और महा जनों के खिलाफ लड़ाई का आवाज उठाया


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